तिनका गिर गया था आँख में और कोई बात नहीं..
दोस्त ये अश्क़ों की वजह से लाल नहीं।
मसल दी थी बेबाक़ी में ज़ोर से बेवजह यूँ ही शायद..
नहीं तिनका गिरा था, देख ! अच्छी मेरी याददाश्त नहीं।
वो तो लोग हैं जो बीच-राह छोड़ देते हैं साथ मेरा..
हाथ पकड़ना आदत तो है मेरी पर ख़राब नहीं।
दोस्त मैखाने में ही जमाते हैं आए-दिन महफ़िल..
बदन से बू तो आती हे पर मैं पीता शराब नहीं।
मैं कभी-कभी तन्हा ही ज़िंदगी के रंग़ ले लेता हूँ..
मौत का अंदाज़ा ना लगाना गर हुई मुलाक़ात नहीं।
अगर तू सोचता है मेरी तड़प सबब है तेरे चैन का..
तो सुन मुझे नींद आती है शब-भर तेरी याद नहीं।
Behtreen baatein likhi hai aapne 👏
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Aapka aabhar 🙂
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Maine bhi likhi hain kuch.. waqt ho to padhiyega ! ☺
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